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अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र – मोदी का नाम आएगा काम या अबकी बार काम-तमाम?

अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र के दिग्गज

वैसे तो अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतरे हुए नेता अपने आप में दमदार छवि रखते हैं जिनमें भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, कांग्रेस के नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, भाजपा के बची सिंह रावत, कांग्रेस के प्रदीप टम्टा और भाजपा के अजय टम्टा शामिल हैं।

अल्मोड़ा के दिग्गज आज का यह विश्लेषण पिछले 10 सालों से अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे अजय टम्टा के कार्यकाल व वर्तमान चुनावी माहौल पर आधारित है।

सबसे निराशाजनक कार्यकाल

अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र हमेशा से ही उपेक्षाओं का शिकार रहा है, यहां से जीतने के बाद सांसद दिल्ली में डेरा डालकर सरकारी आवास का आनंद उठाते रहे हैं, अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र के विकास की तरफ ध्यान किसी का भी नहीं गया है,

सभी दिग्गजों में वर्तमान सांसद अजय टम्टा का कार्यकाल सबसे निराशाजनक नजर आता है क्योंकि पिछले 10 सालों से वो अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं, 10 सालों से गिने-चुने मौकों पर ही वो क्षेत्र में दिखाई दिए, संसदीय क्षेत्र के लोगों के समक्ष अजय टम्टा को खड़ा करके ये सवाल पूछा जाए कि उनका सांसद कौन है तो लगभग 40-50% लोग उन्हें पहचानने से इन्कार कर देंगे।

 

मोदीजी के भरोसे अजय टम्टा

आपको बता दें कि लगातार तीन बार वो सोमेश्वर विधानसभा से विधायक रहे लेकिन जब से वो सांसद बने हैं उन्होंने सोमेश्वर की तरफ नजर डालना भी बंद कर दिया है, अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र से दो बार वो मोदी के नाम पर सांसद बन चुके हैं लेकिन कार्यकाल इतना निराशाजनक रहा है कि उन्हें 10 साल के कार्यकाल के बाद भी मोदी के नाम पर मैदान में उतरना पड़ रहा हैं क्योंकि उनके पास न तो कोई विजन है और न ही उन्होंने कोई ऐसा काम किया है जिसके बल पर वो जनता से फिर वोट देने की अपील कर सकें।

सांसद निधि को आधा भी खर्च नहीं कर पाए अजय टम्टा।

सांसद निधि खर्च करने के मामले में अजय टम्टा का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा क्योंकि पिछले कार्यकाल में अपनी सांसद निधि का 50 फीसदी भी खर्च नहीं कर पाए हमारे माननीय अजय टम्टा जी, लगातार 4 सालों तक गिने-चुने समर्थकों को अपनी सांसद निधि की जलधार से स्नान कराने वाले टम्टा जी ने अपने कार्यालय के अंतिम माह में चार-पाँच करोड़ की निधि को पूरे संसदीय क्षेत्र के कार्यकर्ताओं पर गंगाजल की तरह छिड़ककर अपने सभी तरह के आपसी मनमुटाव के दागों को धोने का काम किया है।

सूखे नशे का परिणाम या फिर ओवरकाॅन्फिडेंश

10 सालों के कार्यकाल में जो व्यक्ति खुद के नाम पर वोट मांगने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हो उसके समर्थकों को लग रहा है कि इस बार हम 4 लाख से अधिक वोटों से जीत जाएंगे। आप खुद सोचिए जिनके पास खुद के लिए वोट मांगने का कोई आधार न हो, अगर वो 4 लाख से अधिक वोटों से जीतने का दावा कर दे तो समझ लेना चाहिए कि चींटी को पंख लग चुके हैं अब उड़ने की बारी है। खैर हमें जीत हार से ज्यादा मतलब नहीं है परंतु इस तरह के दावे सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता है जिसे मैचफिक्सिंग का पूर्वानुमान हो या फिर पहाड़ों का सूखा और हरा नशा करता हो।

जमीनी हकीकत देखेंगे तो खतरे में है अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र

अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र की जमीनी हकीकत ये है कि आर्मी की जगह अग्निवीर योजना के आने से युवा भाजपा से बहुत ज्यादा नाराज है, भर्ती घोटाले, पेपरलीक, अंकिता भण्डारी हत्याकांड, भू-कानून के नाम पर गुमराह करना तथा जगह-जगह शराब की दुकानों को लाइसेंस देने तथा भाजपा के कार्यकर्ताओं की हवाबाजी और ओछेपन के साथ पिछले 10 सालों से सांसद के क्षेत्र से लगभग गायब रहने की घटना से हर व्यक्ति नाराज है, यहां तक कि कार्यकर्ता भी खफा हैं, इस बार भितरघात का भी खतरा मंडरा रहा है, मुख्यमंत्री को पूरे प्रदेश की चिंता छोड़ अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र की चिंता सता रही है इसीलिए आए दिन जगह-जगह कार्यक्रम कर रहे हैं, उन्हें डर है कि कहीं सीट हाथ से गयी तो मुख्यमंत्री की कुर्सी गढ़वाल न खिसक जाए।

बात अगर करें पार्टी का झंडा और फंदा गले में डाले हुए कार्यकर्ता की तो दिखावे के लिए ही सही मजबूरी में समर्थन करना ही पड़ता है और पार्टी अपने ही कार्यकर्ताओं की बातों पर भरोसा करने से भी कतरा रही है क्योंकि जो कार्यकर्ता आज झंडा लेकर जय-जयकार के नारे लगा रहे हैं कुछ दिन पूर्व वही कार्यकर्ता अजय टम्टा का टिकट कटवाने तथा कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य को संसद पहुचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ था।

मामला बस इतना सा है👉

आपको बता दें कि इस बार फिर अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा और कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा मैदान में हैं, दोनों की छवि इमानदार और सरल स्वभाव की मानी जाती है, आपराधिक मामलों से दोनों दूर हैं, एक बार प्रदीप टम्टा तो दो बार अजय टम्टा इस सीट से सांसद बन चुके हैं, इस बार देखना यही होगा कि मोदीजी द्वारा दिया गया 5 किलो राशन और 2000 की किसान निधी पहाड़ के लोगों की नाराजगी दूर कर पाती है या आर्मी की जगह अग्निवीर योजना, भर्ती घोटाले , पेपरलीक, अंकिता भण्डारी हत्याकांड, भू-कानून का गुस्सा और सांसद का 10 सालों से अपने क्षेत्र से गायब रहना भारी पड़ता है।

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अगली कड़ी में 👉

अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र में हर बार टम्टा V/S टम्टा ही क्यों?

लेखक के मन में उपजता एक अनोखा सवाल जो शायद बिना जवाब के ही रह जाए, अल्मोड़ा-पिथौरागढ संसदीय क्षेत्र में लगभग दर्जन भर से ज्यादा अनुसूचित जातियों के लोग रहते हैं लेकिन सीट के आरक्षित होने के बाद हर बार चुनाव आते-आते ये मुकाबला टम्टा V/S टम्टा ही देखने को मिलता है क्या ये मात्र एक संयोग है या फिर कुछ और?

error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!