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हम पहाड़ी – पहाड़ियों पर आधारित एक कविता

हम पहाड़ी – पहाड़ियों पर आधारित एक कविता

हम पहाड़ी – राजेंद्र सिंह भंडारी जी द्वारा रचित कविता

सागर सी चौड़ी रखते हैं सोच हम पहाड़ी, ये न समझना पानी के कोई कतरे हैं हम।

हटते न पीछे देने से जान अपनों के लिए, दुश्मन के लिए भी नहीं कोई खतरे हैं हम।

छाए हैं हम आसमान जैसे सारी दुनियाँ में, जमीन के इन सारे समुंदरों से गहरे हैं हम।

मानते हैं लोहा लोग मेहनत का हमारी, जहान की सारी मुसीबतों पर पहरे हैं हम।

है नहीं गिला हमें बन न पाए पेड़ विशाल, एक दूब की घास सी जमीन पर हरे हैं हम।

रखते हैं दिल बड़ा माफी सहनशीलता में, भूल से न सोचे कोई कि गूँगे बहरे हैं हम।

भरी शराफत इंशानियत रग रग में हमारी, चौबीस कैरेट स्वर्ण के जितने ही खरे हैं हम।

बेहतर समझते मरना करने से काम ग़लत, सदियों से बस इन्ही उसूलों पर ठहरे हैं हम।

करते नहीं समझौता तलवार के आगे भी, डरते किन्ही आकाओं से और न डरे हैं हम।

मिले सुकून हैगुरूर भी ये कहने में हम को, आदमीयत की हर एक पहलू से परे हैं हम।

जो जैसे भी हैं हम है इसमें कृपा उसी की, लबालब ऊपर वाले की दुवा से भरे हैं हम।

कुछ ऐसी ही हैं उत्तराखंडियों की खूबियां, इन्हीं से पार इस जीवन नैया के उतरे हैं हम ।

एक गाँव
एक गाँव – फोटो आभार सोशल मीडिया

आपको बता दें कि यह शानदार कविता जिसका शीर्षक है हम पहाड़ी, हमें सोमेश्वर के लेखक राजेंद्र सिंह भण्डारी जी द्वारा भेजा गया है, इस कविता में पहाड़ियों को सारी खूबियाँ बखूबी तरीके से उतारी गयी है, इस शानदार लेख के लिए thepahad.com उनका आभार व्यक्त करता है।

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error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!