समीक्षा – अनिल कार्की जी की भ्यासकथा
मुझे शक है कि बिंदुली की शादी भी किसी फौजी से ही हुई होगी, पहाड़ के बेरोजगारों का पाला हुआ प्यार अकसर फौंजी ले जाते हैं। मगर याद रखना रे लौड़ों “जिसके पास ज़मीन होती है वो कभी बेरोजगार नहीं होता”। अनिल कार्की
नंदू का लौंडा रामी जो फौजी बन सकता था सिस्टम के आगे लाचार होकर कठार बनता है, बस सिस्टम यहीं पर रुक जाता तो पहाड़ कहता– रात गई बात गई, मगर उसे बनाया जाता है शिलाजीत का स्मगलर । 23 साल का रामी जब ओवरएज होता है तो उसके साथ–साथ नदूं का ख़्वाब भी टूटता है जैसे भर्ती घोटालों से युवा और उनके मां–बाप।
भ्यासकथा के अंत में जो उम्मीद जगती है वो रमुवा की आंखों में चमकती है क्योंकि
“हुड़ी चेला तो गड़ूंवे न्यार हुनि”
अब रमुवा अफ़सर बने न बने मगर गाँव से सपनों की एक कतार निकलती दिखती है, जिनकी पतवार बहुत मजबूत लगती है। फिर कहानी खुद को दोहराएगी, कोई न कोई नायिका तो दीवान सिंह के लड़के से कहेगी
तू ज़िंदगी की नदी भी क्यों नहीं तरा देता मुझे, ऐसे ही हाथ पकड़ कर।
संसाधनों की जो बंदरबांट है उससे पहले ख़त्म होती है संवेदनाएं
क्या हो जब तुम अपनी ही ज़मीन पर मुंशी बन जाओ ?
मथुरिया को दोस्त मिलता है या फिर धोखा ?
नदी किनारे के खेत किसी विधायक को मिल जाएं तो वो मुख्यमंत्री बन जाता है बाबू ।
बदलते चुनाव चिह्न किस विकास की तस्वीर पेश करते हैं ? लालटेन और जलता दीपक के बुझने के बाद विकास की परिभाषा क्या है ?
हालत इतने बदत्तर कैसे हुए की चरखुल्ली जैसी शेरनी, नौकरानी से भी पल्ले दर्जे की हो गई ?
क्या प्रेम राम के भाई, जिनका पलायन जिम्दारों की आभिजातीय मानसिकता के चलते हुआ, क्या वो कभी लौटेंगे पहाड़ ?
एक कलाकार के प्रति पहाड़ी उच्चवर्गीय जन मानस कभी न्याय नहीं कर सकता ।
भगवान कसम अनिल कार्की का ये संग्रह कभी नहीं मर सकता क्योंकि भगवान कका की कसम ऐसे ही जो क्या खाते हैं हम लोग।
भ्यासकथा के समीक्षक हर्षवर्धन जोशी
उत्तराखंड के मशहूर लेखक व चिन्तक अनिल कार्की जी की कालजई रचना ‘भ्यासकथा’ की ये समीक्षा सोमेश्वर के माला गाँव निवासी हर्षवर्धन जोशी जी ने की है , अगर आपको उनका यह लेख पसंद आया है तो शेयर जरूर कीजिये।।
अनिल की भ्यासकथा को अनुनाद का सम्मान - सम्बंधित लेख अमर उजाला
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