होली खेलत हैं कैलाशपति । कुमाऊँनी होली
होली में भगवान शिव के एक अलग ही रुप की कल्पना की जाती है, जिसमें भगवान शिव, माता पार्वती संग होली खेलते हैं उसी का वर्णन इस लेख में पढ़ने को मिलेगा।
॥ होली खेलत हैं कैलाशपति ॥
होली खेलत हैं कैलाश-पति, होली खेलत है कैलाश-पति॥
शिव की जटा में गंगा विराजे, गंगा लाए हैं भागीरथी।
होली खेलत है कैलाश-पति॥
बूढ़े नदिया, शिव जी विराजे, संग में लाए पार्वती।
होली खेलत है कैलाश-पति॥
हाथ त्रिशूल गले में रुद्रमाला, खाक रमाए लाख पति।
होली खेलत है कैलाशपति॥
भारी दान दियो शिव शंकर, भस्मासुर चाहे पार्वती।
होली खेलत हैं कैलाश-पति॥
तीनों लोक फिरे शिव शंकर, कहीं न मिले त्रिलोक-पति।
होली खेलत हैं कैलाशपति॥
ध्यान करो जब शिव शंकर को नाचने लगे कैलाश-पति।
होली खेलत है कैलाश-पति ॥
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दुशासन बीच सभा में खिंचात मेरी साड़ी। मेरी लाज रखो गिरधारी।
सांवरिया मोहन गिरधारी, दिखावे लीला न्यारी-न्यारी ।
बालम घर आए कौन दिना। बालम घर आए फागुन मा।
हां हां हां मोहन गिरधारी । ऐसो अनाड़ी चुनर गयो फाड़ी ।
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नोट– यह लेख श्रीमान गिरीश काण्डपाल जी की पुस्तक “प्राचीन कुमाऊँनी होलियों का संलग्न” पर आधारित है।