इलैक्टोरल बान्ड: बहुत बड़ा घोटाला
पिछले कुछ समय से इलैक्टोरल बान्ड पर खूब चर्चा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने SBI से इलैक्टोरल बान्ड खरीद फरोख्त की रिपोर्ट मांगी थी जोकि सार्वजनिक कर दी गई है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा को सबसे ज्यादा लगभग 6000 करोड़ (₹6000,0000000) रूपये इलैक्टोरल बान्ड के रूप में बड़े-बड़े व्यापारियों व संस्थाओं द्वारा दिए गए थे, इलैक्टोरल बान्ड की इस बहती गंगा में देश की अन्य पार्टियों ने भी हाथ धोने का काम किया, योजना भारतीय जनता पार्टी ही लायी थी जिससे सबसे ज्यादा पैसा उन्होंने इकट्ठा किया इसीलिए हम सवाल उन्ही से पूछेंगे।
ईमानदारी का चोला पहने बेईमान फकीर।
यहां पर बेईमान फकीर शब्द किसके लिए इस्तेमाल किया जा रहा है यह आप जानते ही होंगे, इलैक्टोरल बान्ड पर जब से सरकार और SBI घेरे में आयी है तब से इस लिस्ट को सार्वजनिक करने से रोकने तथा चुनावों के बाद तक टालने की हर संभव कोशिश की गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के नाख में दम कर दिया है, SBI द्वारा जारी की गई लिस्ट जब से चुनाव आयोग की वैबसाइट पर पब्लिक हुई है तब से माहौल गरमाया हुआ है।
अब ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि जिन कंपनियों के दफ्तरों में ईडी और सीबीआई के छापे पड़े हैं उन कपनियों ने कुछ ही दिनों बाद इलैक्टोरल बान्ड खरीदे और मामला रफा-दफा कर दिया गया।
कुछ ऐसी कंपनियां भी हैं जिन्होंने करोड़ों रुपये के इलैक्टोरल बान्ड खरीदे और तुरंत बाद उन्हें हजारों करोड़ के ठेके मिल गए।
मतलब साफ है कि तुम हमें चंदा दो और हम तुम्हें धंधा देंगे, और तुम हमें चंदा दो हम तुम्हें ईडी और सीबीआई के छापों से बचाएंगे।
मतलब कमीशनखोरी और हफ्ता वसूली का सबसे बड़ा रैकेट इस इलैक्टोरल बान्ड के जरिए चलाया जा रहा था।
न खाउंगा न खाने दूंगा वाले भी 6000 करोड़ खा जा रहे हैं।
खुद को सबसे बड़े ईमानदार, “न खाउंगा न खाने दूंगा“ की बात करने वाले महापुरुष ही इतने बड़े घोटाले के मास्टरमाइंड होंगे ऐसा देश की जनता ने कभी सोचा भी नहीं होगा।
हम बेईमान फकीर शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि सरकारी तंत्र को मदारी के भालू की तरह नचाने में वो खूब मशहूर हैं, वो भले देश के दिवंगत प्रधानमंत्रियों को अपशब्द इस्तेमाल कर लेते हों लेकिन हम उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि वो बहुत बड़े जादूगर हैं, अयोग्य से अयोग्य विधायक व सांसद भी उनके नाम से चुनाव जीत जाते हैं ।
इस घोटाले को मास्टरस्ट्रोक मान लें?
इस घोटाले को मास्टर स्ट्रोक मान कर चलने में कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि फकीर साहब ने किया है तो कुछ सोच समझ कर ही किया होगा, क्योंकि फकीर है तो बड़े से बड़ा घोटाला भी मुमकिन है।
जब तक सरकार है तब तक भले ही इस स्कैम पर पर्दा डालने का प्रयास जारी रहे परंतु आज नहीं तो 5-10 या 15 साल बाद ही सही, जनता इस भ्रष्टाचार से रुबरू अवश्य होगी। तब देश के भ्रष्ट प्रधानमंत्रियों की सूची में 56 इंच के सीने वाले किसी न किसी प्रधानमंत्री का नाम मोटे अक्षरों में अवश्य लिखा आएगा।
इलैक्टोरल बान्ड के जरिए इन राजनीतिक दलों को जो पैसा गया है असल में वह हम सभी के दैनिक जरूरत की चीजों के दाम बढ़ाकर बसूल कर लिया गया है, महंगाई बढ़ने का एक कारण यह भी है। लेकिन लोगों को ये बात समझ कहाँ आएगी?
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इस घोटाले को राष्ट्रीय मीडिया मे कवरेज नहीं मिलेगी क्योंकि उनका अन्नदाता, उनका भगवान ही इस घोटाले का मास्टरमाइंड है।।
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नोट- लेखक को न विज्ञापनों का लालच है और न चोरों का डर।।