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काफल और माल्टा शराब का विरोध ! उत्तराखंड

काफल और माल्टा शराब का विरोध !

क्या काफल के सकारात्मक अस्तित्व को मिटाना चाहती है उत्तराखंड बीजेपी सरकार ? काफल और माल्टा शराब का विरोध ! एक विस्तृत लेख पढिए दीपक जोशी जी के शब्दों में।

काफल और माल्टा
असली काफल और माल्टा

पहाड़ की संस्कृति और सभ्यता को खत्म करने की बीजेपी सरकार की एक कोशिश ?

हमारा पहाड़ क्यों जाना जाता है,यह सवाल आपको खुद से करना पड़ेगा और आपने यह सवाल कई बार ख़ुद से किया भी होगा और जैसे ही आपने यह सवाल किया होगा आपके मन में यहां के फलों की मिठास अवश्य ही आई होगी , लेकिन तब आपने यह नहीं सोचा होगा की आने वाले वक्त में इन फलों की पवित्रता को नष्ट करने का काम इन सरकारों द्वारा किया जाएगा जिन्हें जनता के द्वारा पहाड़ों को संरक्षित करने के लिए बनाया गया है ।

जी हां दोस्तों ऐसा ही हो रहा है अपने उत्तराखंड में, धाकड़ सरकार यानी कि भाजपा डबल इंजन सरकार ने नई आबकारी नीति बनाई है जिसमें किसानों और बागवानों का ध्यान रखते हुए माल्टा, काफल, सेब, नाशपाती,तिमूर, आडू की देशी शराब बनाई जा रही है । इसी को हमारे पहाड़ में कहा जाता है कि उजड़ते वक्त चीटियां में भी पंख लग जाते हैं ..

*कमाल है ना बीजेपी सरकार ने पहाड़ के फलों की कितनी चिंता की है ? नमन सरकार !

उत्तराखंड के सभी युवाओं को उत्तराखंड सरकार के इस क्रांतिकारी निर्णय के लिए आभार रैली अवश्य निकालनी चाहिए ।।

काफल और माल्टा शराब
काफल और माल्टा शराब की फोटो

जिसमें उन्हें माल्टा , काफ़ल की दारु पिलानी चाहिए जिससे कि सरकार के खजाने में कुछ रुपए और जमा हो जाएं , और नेता जी एक मकान हल्द्वानी, देहरादून, दिल्ली के बाद लंदन में भी ले सकें ,यह हम मजाक नहीं कर रहे हैं दोस्तों जिस राज्य में हर छोटे से काम के बाद आभार रैली में करोड़ों रुपए खर्च हो जाते हैं वहां यह भी होना ही चाहिए…

*पहाड़ के लोगों के कारण ही पहाड़ के प्रति असंवेदनशील हुई भाजपा और कांग्रेस

आज भाजपा और कांग्रेस पहाड़ के लोगों की संस्कृति को खुले- आम नष्ट करने का गंदा खेल खेल रही हैं फिर भी लोग खामोश है यही खामोशी उत्तराखंड के अस्तित्व के लिए संकट बनेगी क्योंकि जिन फलों को उनकी खूबसूरती के लिए जाना जाता हो ,जिन फलों को उनके पौष्टिकता के लिए जाना जाता हो, जिन फलों से अनेक बड़ी से बड़ी बीमारियों का हल निकलता हो , जब उन फलों के नाम से लोगों को बीमार करने, लोगों को मारने की कोशिश करने के लिए शराब बनाई जा रही हो तो मान लीजिए वह दिन दूर नहीं जब पहाड़ में केवल काफल के कंगाल मिलेंगे, एक ओर सरकार कहती है कि हम पहाड़ के फलों को विश्व स्तर में ले जाने का कार्य करेंगे तो क्या उनका कार्य शराब के नाम से फलों को मार्केट में लाने का प्लान है।

बीजेपी कांग्रेस
जनता को गुमराह कर रही है बीजेपी और कांग्रेस।

*उत्तराखंड सरकार को जहां देना चाहिए था शिक्षा रोजगार और स्वास्थ्य, वहां मिल रही है काफल शराब

उत्तराखंड आबकारी विभाग आपको बीमार बनाना चाहता है, वह आपको बुरी परिस्थितियों में भेज कर अपनी कमाई बढ़ाने में लगा है… आपके लिवर की क्षति करना उनकी मंशा है , साथ ही दिल की बीमारी , कैंसर, तनाव, चिंता,अवसाद,उदासीनता,आत्मविश्वास की कमी, निर्णय लेने की क्षमता में कमी,व्यक्तिगत संबंधों को नष्ट करने की साज़िश साथ ही परिवारिक संबंधों में तनाव, ग़रीबी, अपराधी , और मजदूर बनाने का महत्वपूर्ण प्रयास है।।

*आकर्षण के नाम पर यह नंगापन स्वीकार नहीं करेगा उत्तराखंड

शराब का नाम फलों के नाम से रखना उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए प्रयोग किया गया है। लेकिन यह पहाड़ की सभ्यता पर गलत धारणा डालता है ।।

**आखिर क्या है काफल का इतिहास और महत्व

उत्तराखंड में काफल का इतिहास बहुत पुराना है। काफल एक प्रकार का स्वादिष्ठ फल है जो उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह इसलिए बता रहा हूं क्योंकि इस लेख को बाहर के भी कुछ लोग पढ़ रहे होंगे ,यह फल स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण औषधीय स्रोत रहा है .

काफल

काफल का उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि महाभारत और रामायण में। इन ग्रंथों में काफल को एक पवित्र फल के रूप में वर्णित किया गया है।

इसी के साथ उत्तराखंड में काफल की खेती मध्ययुगीन काल से ही की जाती रही है। स्थानीय राजाओं और जमींदारों ने काफल की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रोत्साहन दिए , और आजकल उत्तराखंड में काफल की शराब बन रही है । काफल का उपयोग जहां जैम, जेली, और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाना था उससे नशा बन रहा है। एक ओर काफल का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है दूसरी ओर……।

***उत्तराखंड में काफल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र और लाभ

पिथौरागढ़,चम्पावत,अल्मोड़ा, नैनीताल और उत्तरकाशी में काफल बहुआयत रूप में पाए जाते हैं, इसके अनेक लाभ हैं
जैसे कि काफल में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में काफल का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है।

**कभी देव फल के नाम से जाना जाता था पहाड़ में काफल

काफल को देवों का फल भी माना जाता है। जिसका जिक्र कुमाऊं लोक गीतों में काफी सुनने मिलता है। स्थानीय लोक गीतों के अनुसार काफल खुद अपना परिचय देता और अपना दर्द बयां करता है। काफल कहता है कि वो स्वर्ग के इंद्र देव के खाने योग्य फल है, जो अब धरती पर आ गया है।

काफल 2 सच में काफल और इससे जुड़ी कहानियां,गीत कितने अनोखे हैं। यह मात्र फल नहीं बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का हिस्सा है। जिसे यहां के लोगों ने आज भी संभालकर रखा हुआ है। अफसोस सरकार भी इसके महत्व को समझ पाती..

वह किस्सा जब नेहरू जी ने काफल खाने की जताई थी इच्छा

आजादी के बाद 1955 में सोवियत संघ (वर्तमान रुस) दो बडे नेता ख्रुश्चेव और बुल्गानिन भारत यात्रा पर आये. उनके सम्मान में तीनमूर्ति भवन में एक समारोह आयोजित किया गया. अंतराष्ट्रीय स्तर के इस समारोह में पहली बार बेड़ू पाको बारामासा गाया गया. समारोह के बाद तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे न केवल सर्वश्रेष्ठ लोकगीत चुना बल्कि इसके गायक मोहन उप्रेती को बेड़ू बॉय नाम भी दे दिया

कहा यहां तक जाता है कि इस गीत को सुनने के बाद पंडित नेहरु ने काफल खाने की इच्छा व्यक्त की जो उनकी उत्तराखंड की अगली पहली यात्रा पर पूरी भी की गयी.

*लोगों की खामोशी ने सरकार का बढ़ाया है घमंड

राज्य में कुछ भी होता है तो लोगों ने अब अपनी आवाज को बुलंद करना छोड़ दिया है जब काफल और माल्टा नाम से दारू भी आई तो किसी के मुख से कुछ भी विरोध के सुर नहीं देखने को मिले , हां कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने इस विषय में बात अवश्य ही की थी लेकिन जिस तरह का विरोध आम जनता द्वारा होना चाहिए था वह किसी ने नहीं किया ,

इस तरह से सरकारों का आत्मविश्वास बढ़ जाता है और वह सोचते हैं कि लोग अब हमारे इशारों में चलने लगे हैं यानी कि वह मालिक हैं और नेताओं की नजरों में यहां की जनता एक कुत्ते के समान है, अभी मेरे कुत्ता लिखने पर कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो रही होगी , उसके लिए माफ़ी लेकिन हम जैसे लोगों की नेताओं द्वारा यही इज्जत की जाती है तो हमें स्वीकार करना चाहिए, अगर स्वीकार नहीं करना है तो विरोध के सुर बुलंद करने चाहिए ..

**बिक गई मीडिया, मत लगाइए उम्मीद,देश की पत्रकारिता का सबसे बुरा दौर है आज

आजादी से भी सालों पहले एक अख़बार छपता था जो अल्मोड़ा से प्रकाशित होता था नाम था अल्मोड़ा अखबार जिस अखबार ने बिना डरे उसे दौर में लिखा था कि लोगों को मारने के लिए ही शराब को बढ़ावा दिया जा रहा है

अल्मोड़ा अखबार

क्या यह उम्मीद आप आज की मीडिया से कर सकते हैं, खरीदी हुई मीडिया ऐसा कैसे लिख सकती है, दोस्तों दिक्कत पत्रकारों की नहीं है पत्रकार अपने धर्म को पूरा निभाना भी जानता है और निभाते भी रहा है आज दिक्कत समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के मालिकों की है जो अंधाधुन पैसा कमाने के लिए सरकार के पांव दबाने के लिए ही तत्पर रहते हैं

नहीं तो यकीन मानिए दोस्तों हमारे देश में ऐसे ऐसे पत्रकार हैं जो देश के सच्चे वीर हैं लेकिन चार पैसे कमाने के लिए उन्हें मालिकों की कही बात का अनुसरण करना पड़ता है जिसका खामियाजा पूरे पत्रकारिता जगत को उठाना पड़ रहा है और पूरी दुनिया में सबसे भ्रष्ट और सबसे डरपोक मीडिया का खिताब भी भारत के नाम ही आता है ..

और अनेक पत्रकार हैं जो सही से कार्य कर रहे हैं लेकिन वह अपने जीवन यापन भी बहुत ही आर्थिक तंगी से कर रहे हैं और जो सक्षम भी हैं उनको बर्बाद करने का काम सरकार कर रही है इसलिए भारत की पत्रकारिता के लिए यह दौर सबसे बुरा है ।।

**जाने-माने लेखक शेखर पाठक ने सालों पहले इस कारण जताई थी पहाड़ के प्रति चिंता

शेखर पाठक ने कई दशकों की यात्राओं और लेखों के माध्यम से हिमालय, हिमालय का जीवन, हिमालय के लोग, हिमालय की समृद्धि और समस्याओं को बेहद मानवीय तरीके से प्रस्तुत किया है. उनकी यह किताब है ‘दास्तान-ए-हिमालय’ जो दो भागों में है ..

शेखर पाठक जी की किताब

शेखर पाठक ने इस किताब में पहाड़ के अनेक रूपों की व्याख्या की है और इसमें ही एक अध्याय यह भी सामने आता है कि किस तरीके से पहाड़ों में शराब का प्रचलन शुरू हुआ, पहाड़ के लोग कब तक शराब नहीं पीते थे और शराब के पीछे की मंशा क्या रही थी और शराब से पहाड़ कैसे बर्बाद हो गए लेखक ने शराब के बढ़ते प्रभाव के कारण बड़ी चिंता भी किताब में जताई है ..

**कांग्रेस ने भी एक बार भी नहीं जताई आपत्ती

भाजपा कांग्रेस दोनों एक ही थाली में भात खाने वाले हैं यह सभी को पता है बाहर से लोगों को लड़वाने का काम करती हैं अंदर ही अंदर मिल बांट के पैसा खाते हैं यह सभी को पता भी है यही कारण है कि इस तरह के मुद्दों में विपक्ष में रहने वाली पार्टी भी गूंगी हो जाती है ।।

**पिछले ही साल पीएम मोदी हुए थे काफल के दीवाने, कहा था पूरे विश्व में दिलाएंगे काफल को पहचान

पिछले साल पीएम मोदी को भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी जी ने काफल भेंट किए थे। इस काफल को खाकर पीएम मोदी इसके दीवाने हो गए। याद होगा आपको और उन्होंने इसका जिक्र मन की बात में भी किया था । यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री धामी का आभार भी व्यक्त किया था ।

मोदीजी का पत्र

अब मुझे लगता है धामी जी को अब काफल से बनी शराब भी माननीय प्रधानमंत्री जी के लिए ले जानी चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि उत्तराखंड आबकारी विभाग इतना तेजस्वी है कि उसने काफल की भी दारु बना दी है और जब इसका धन्यवाद लेटर उत्तराखंड के सीएम धामी जी को मिलेगा तो वह उत्तराखंड के लिए गर्व के पल होंगे ।।

निष्कर्ष

काफल एक बहुत ही पवित्र और स्वास्थ्यवर्धक फल है उसकी महत्वता को ध्यान रखते हुए सरकार को अपना फैसला वापस लेना चाहिए और इन फलों के नाम से बन रही दारू के नाम को बदल देना चाहिए ताकि फलों की पहचान धूमिल ना हो लेकिन यह वैसा ही है जैसा मरने के बाद किसी व्यक्ति की जीवित होने की उम्मीद करना क्योंकि वर्तमान की सभी सरकारें अपने घमंड में किसी की भावनाओं को नहीं समझ सकती और यही पहाड़ का दुर्भाग्य है …

error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!