॥ मोहन गिरधारी॥
इस लेख में आपको कुमाऊँनी होली में गाए जाने वाले प्रसिद्ध होली “मोहन गिरधारी” के बोल पढने को मिलेंगे।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी”
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी” ।।
ऐसो अनाड़ी, चुनर गयो फाड़ी
ऐसो अनाड़ी, चुनर गयो फाड़ी।
ओ “हंसी-हसी” दे गयो गारी मोहन-गिरधारी।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी” ॥
चीर चुरायो कदम चढ़ी बैठ्यो
चीर चुरायो कदम चढ़ी बैठ्यो।
“लुकी-छिपी” करत शुमारी मोहन-गिरधारी।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी”॥
बांह पकड़ मोरी उंगली मरोड़ी,
बांह पकड़ मोरी उंगली मरोड़ी।
नाहक शोर मचाए मोहन-गिरधारी।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी”
हरी हरी चूड़ियां पलंग पर तोड़ी
हरी हरी चूड़ियां पलंग पर तोड़ी।
नाजुक बइयां मरोड़ी
नाहक रार मचाई मोहन-गिरधारी।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी”
दही मेरो खाय, मटकी मेरी तोड़ी
दही मेरो खाय, मटकी मेरी तोड़ी।
हंसी-हंसी दे गयो गारी मोहन-गिरधारी
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी।।
जमुना के तट पर बंसी के बट पर
जमुना के तट पर बंसी के बट पर
अंगिया भीगी गए सारी मोहन-गिरधारी।
हां…. हां…. हां “मोहन – गिरधारी”।
आवन कह गए अजहु न आवै,
आवन कह गए अजहु न आवै,
झूठी प्रीत लगायी मोहन-गिरधारी।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी”।।
सांवल रूप अहीर को छोरो,
सांवल रूप अहीर को छोरो
नैनन की छवि न्यारी, मोहन-गिरधारी।
हां… हां… हां “मोहन – गिरधारी”।।
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नोट- यह लेख श्रीमान गिरीश काण्डपाल जी की पुस्तक प्राचीन कुमाऊँनी होलियों का संलग्न पर आधारित है।