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कुमाऊनी कविता ॥ “उत्तराखंड में बणौक आग” रचियता प्रकाश चंद्र पाण्डेय

उत्तराखंड में बणौक आग

धू धू करनै जलण लै रईं , उत्तराखण्डाक् पहाड़ा !
सोर बटिक उत्तरकाशी तक, नैन्ताल और अल्माड़ा!!

चाड़ – पिटंगाकि कजा ऐगे , भड़ी गईं घुरड़ कांकड़ा!
बणैकि अगनि बेकाबू हैगे, भसम छैं बाड़ बाड़ हाड़ा!!

पतरौव रैंजर डी एफ ओ लै, भाजणईं सब बेशुमारा।
मंत्री लोगनैकि हाकाहाक हैरै, गर्जी दुनगिरि गेवाड़ा!!

बाँज बुराँश काफव नि रया, उजड़ि गईं बाबिलाक जाड़ा!
हे परमेसरा पाणि बरसाओ, तबै थामियलि हाहाकारा !!

हे दुनगिरी हे गर्जिया मैया , मुनई टेकनूं तुमार द्वारा!
आग निमूण में मधत करूंला , सब मिलि बेर दगाड़ा!!

घुघुत सिटौल मोर और कावा , स्याप छछुंदर छिपाड़ा !
आन् पोथिलै समेत स्वाहा, क्वे लै नि रै सक वां ठाड़ा !!

आग् लगूणियो चेतोवै रया, यो बणूल तुमोर के बिगाड़ा !
आज पशु पक्षी टिटाट पड़ि रौ ,यसिकै तुम मारला डाड़ा !!

प्रकाश पाण्डेय ✍️ उत्तराखंड में बणौक आग
ग्राम – पान हाल कनखल (हरद्वार)

जंगलो में लग रही आग पर आधारित यह कविता हमें हरिद्वार निवासी श्री प्रकाश पाण्डेय जी द्वारा भेजी गई है।

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error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!