अटल आदर्श विद्यालयों में संस्कृत वाले विद्यार्थियों की नो-एंट्री से परेशान अभिभावक
अटल आदर्श विद्यालय विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए मुसीबत की जड़ बन चुके हैं, अल्मोड़ा के सोमेश्वर लोद घाटी के कई बच्चों को अपने नज़दीकी स्कूलों में एडमिशन नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वज़ह से अभिभावक परेशान हैं और बच्चो के भविष्य पर संकट छा गया है, अभिभावकों ने सामाजिक संगठन सोमेश्वर घाटी सेवा समूह के सदस्यों से मांगी मदद।
ये है पूरा मामला –
मामला कुछ इस प्रकार है कि अल्मोड़ा जिले के ताकुला ब्लॉक में दो अटल आदर्श विद्यालयों को घोषणा हुई मगर अब समस्या इसलिए खड़ी हो गयी क्योंकि दोनों ही अटल आदर्श विद्यालय सोमेश्वर में ही खुल गए, जिनके बीच की दूरी केवल पाँच किलोमीटर है। अतः अब ये विद्यालय जूनियर हाईस्कूल से आने वाले संस्कृत के छात्रों को एडमिशन देने से कतरा रहे हैं।
एडमिशन नहीं लेने को लेकर स्कूल प्रसाशन का ये कहना है कि अटल आदर्श में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होनी है अतः हम उन छात्रों को दाखिला नहीं दे सकते जिन्होने संस्कृत की पढ़ाई की है क्योंकि वे बच्चे अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई नहीं कर पाएंगे।
चुंकि राजकीय इंटर कॉलेज सोमेश्वर और राजकीय इंटर कॉलेज सलोंज दोनों ही अंग्रेजी माध्यम में हो चुके हैं इसलिए जो, जूनियर हाई स्कूल लोद व अन्य स्कूलों से नवी और दसवीं में संस्कृत पढ़े हुए छात्र हैं, उनके लिए राजकीय इंटर कालेज चौड़ा, चनौदा और बिन्ता ही एकमात्र विकल्प हैं, लेकिन लोद घाटी के बच्चों (खासकर लड़कीयों) के लिए यह बहुत दूर हैं, जिसके लिए छात्र – छात्राओं को अतिरिक्त समय और किराया भाड़ा देना होगा और वर्तमान स्थिति को देखते हुए इतनी दूर कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को भेजना पसंद नहीं करेगा।
परेशान अभिभावकों और विद्यार्थियों की जब किसी ने नहीं सुनी तो उन्होंने सामाजिक संगठन सोमेश्वर घाटी सेवा समूह के सदस्यों से बातचीत कर इस मामले को अपने फेसबुक पेज सोमेश्वर घाटी – उत्तराखंड के माध्यम से हुक्मरानों तक पहुंचाने की अपील की।
मामले का सारांश-
कुल मिलाकर मामला इतना सा है कि सरकार ने एक तुगलकी फरमान जारी कर दिया वो भी बिना सूझबूझ के, जब अंग्रेजी माध्यम को ही प्रथमिकता देनी थी तो कक्षा 1 से इसे लागू करते तथा अभिभावकों और शिक्षकों की राय ले लेते।
संस्कृत के प्रति सरकार का दोगलापन-
नवी और दसवीं में संस्कृत तथा गृह विज्ञान विषयों से उत्तीर्ण हुए बच्चों को 11वीं में एडमिशन के लिए इस तरह से परेशान करना बहुत ही निंदनीय है, जहां एक तरफ भाजपा सरकार के बड़े-बड़े नेता संस्कृत पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और दुनिया भर के सभी आविष्कारों के लिए संस्कृत के किसी श्लोक का सहारा लेकर उस आविष्कार को अपनी देन बताते हैं ऐसे में कोई विद्यार्थी अगर 9वीं और 10वीं में संस्कृत पढकर आगे को अपने नजदीकी विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करना चाहता है तो उसके लिए सभी दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।
कक्षा 9 में प्रवेश ले रही बालिकाओं के लिए गणित की अनिवार्यता क्यों?
कक्षा नौ में प्रवेश लेने वाली बालिकाओं के लिए गणित विषय की अनिवार्यता तथा गृह विज्ञान का ना होना भी अटल आदर्श विद्यालयों की शिक्षा से कई बालिकाओं को वंचित कर रहा है, पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति सरकार अनभिज्ञ है, दिल्ली और देहरादून में बैठे नीति निर्धारक जमीनी हकीकत से अंजान हैं, उन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में घरेलू कामकाजों के साथ-साथ शिक्षा ग्रहण कर रही बालिकाओं से तथा उनके अभिभावकों से राय अवश्य लेनी चाहिए और उनपर जबरदस्ती गणित विषय का अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहिए।
सरकार से हमारा आग्रह –
सरकार से हमारा अनुरोध है कि बच्चों के भविष्य को देखते हुए आने वाले दो-तीन सालों तक उत्कृष्ट विद्यालयों में सीबीएससी के साथ हिंदी मीडियम के पढाई की व्यवस्था भी की जानी चाहिए, और साथ ही अंग्रेजी माध्यम में सीबीएसई कल्चर को जो नवी कक्षा के बाद लागू किया जाता है उसे कक्षा एक के बाद ही लागू किया जाना चाहिए ताकि बच्चों की नीव मजबूत हो सके।
हमें उम्मीद है कि हमारी अपील पर सरकार अमल करेगी क्योंकि डबल इंजन की सरकार का नारा बेटी पढ़ाओ – बेटी बचाओ सिर्फ सोशल मीडिया और पोस्टर-बैनरों तक ही सीमित न रहकर उसका असर जमीनी स्तर पर देखने को मिलेगा हमें ऐसी उम्मीद है। ।