अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (international women’s Day)
विश्वविख्यात जर्मन क्रांतिकारी ‘रोज़ा लग्जमबर्ग’ ने कहा है कि “जिस दिन औरतें अपने श्रम का हिसाब माँगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी।” आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (international women’s Day) के बहाने बात करते हैं अपने पहाड़ की महिलाओं की…
पहाड़ की महिलाऐं
भले ही पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला सशक्तिकरण का रोना रोती है लेकिन हम आपको बता दें कि
पूरी दुनिया में सिर्फ पहाड़ की महिलाएं ही हैं जो सशक्त है, वो सुबह उठने के बाद गाय-भैंस भी देखती हैं, खाना भी बनाती हैं, जंगल जाती हैं और घास, पिरूल तथा लकड़ी के बड़े-बड़े गट्ठर भी लाती हैं, खेती-बाड़ी का काम भी करती हैं। पति शराब पीकर आए तो मार भी खा लेती हैं, खुद भूखी रह लेंगी पर पूरे परिवार को भरपेट खाना खिलाती हैं। कभी बिमार होती हैं तब भी काम करती हैं, वो इतना काम करती हैं कि उनके पास थकने का भी समय नही होता हैं, ये समझिए कि सुबह जागने से लेकर रात को सोने तक लगातार काम करती हैं। हर उम्र में अलग-अगल रिश्तों का ख्याल रखते-रखते वो खुद के सुखों को भूलकर इतनी सख्त हो चुकी हैं कि उनके सामने ये सशक्तिकरण जैसा शब्द बिल्कुल बौना नजर आता है।
नमन है आपको
पहाड़ की सभी महिलाओं को हम नमन करते हैं क्योंकि आप पहाड़ की नारी ही नहीं बल्कि पहाड़ सी नारी हो, ऐसा हम इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि आज स्थिति ऐसा है कि हमारा तो पूरा पहाड़ ही महिलाओं पर निर्भर हो चुका है जो गाँव आबाद हैं उन्हीं के बदौलत हैं।
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