इलैक्टोरल बान्ड पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार।
“न खाउंगा न खाने दूगा” का भाषण देते-देते प्रधानमंत्री मोदी की सरकार 5000 करोड़ के इलैक्टोरल बान्ड लेकर मौज उड़ा रही है, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SBI से 12 मार्च 2024 तक डाटा मांगा है और 15 मार्च तक चुनाव आयोग की वैबसाइट पर इस इलैक्टरोल बान्ड की जानकारी साझा कर दी जाएगी, सुप्रीम कोर्ट ने इलैक्टोरल बान्ड को असंवैधानिक बताकर इसके लेनदेन पर भी संदेह व्यक्त किया है।
5200 करोड़ के इलैक्टोरल बान्ड भाजपा के पास?
आपको बता दें कि इलैक्टरोल बान्ड को सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक बता चुकी है।
जानकारी के अनुसार पिछले 5-6 सालों में राजनीतिक पार्टियों ने अलग-अलग उद्योगपतियों से 6000 करोड़ के आसपास के इलैक्टरोल बान्ड लिए हैं, जिसमें अकेले भाजपा ने 5200 के आसपास का चंदा लिया और इसी पैसे से कई जगह खरीद-फरोख्त कर अपनी सरकारें बनाई, राष्ट्रीय मीडिया को चाटुकारिता में लगाया, झूठे और लोकलुभावने विज्ञापन छपवाए, पार्टी के कार्यकर्ताओं को खूब पैसा दिया और अपने इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने का काम किया।
लाजिमी है कि ये पैसा आम जनता ने तो दिया नहीं होगा, ये पैसा उन्हीं उद्योगपतियों ने दिया होगा जो देश को लूट रहे हैं, जिनकी वजह से आज महंगाई आसमान छू रही है क्योंकि हजारों करोड़ का चंदा किसी ने खुद झोला उठाकर हिमालय चले जाने के लिए तो दिया नहीं होगा, मतलब साफ है कि जिसने 1 करोड़ दिया होगा उसने 100 करोड़ का फायदा भी उठाया होगा।
दिखावे की इमानदारी
एक तरफ खुद को राष्ट्रवादी, देश की हितैषी और भारत माता की संतान बताने वाली पार्टी गैरकानूनी तरीके से 5000 करोड़ से ज्यादा के इलैक्टोरल बान्ड लेकर खुद का 5 स्टार कार्यालय बना रही है, प्रधानमंत्री खुद लाखों रूपये के सूट-बूट पहन रहे हैं, अपने वो सभी शौक पूरा कर रहे हैं जो बचपन में नहीं कर पाए थे और दूसरी तरफ देश की 70 प्रतिशत जनता 5 किलो मुफ़्त राशन से खुश होकर कह रही है मोदी है तो मुमकिन है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SBI को फटकार जरूर लगाई है परंतु उन्हें फटकार कौन लगा सकता है जो खुद गरीब होने की एक्टिंग करते-करते उद्योगपतियों का खास बनकर देश के गरीबों को ही लूटने का काम कर रहे हैं।
SBI इलैक्टोरल बान्ड का डाटा सुप्रीम कोर्ट को सौंपती है या नहीं ये भी देखना होगा, हमें तो इंतज़ार है चुनाव आयोग की वैबसाइट पर गैरकानूनी इलैक्टोरल बान्ड लेने वाली पार्टियों की सूची सार्वजनिक होने का।।
खैर जनता को इन बातों से क्या ही फर्क पड़ता है, लेकिन हमने निर्भीक पत्रकारिता को जिंदा रखने की ठान ली है, हम तो लिखेंगे ही।
बड़े-बड़े चैनल इस खबर को नहीं दिखाएंगे और दिखाएंगे भी तो तोड़ मरोड़कर, हम सच दिखाएंगे और लोगों की आंखों में लगी पट्टी को खोलने का काम भी करेंगे।
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