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पिथौरागढ़ सेना भर्ती में सरकारी तंत्र की खामियां। बेबस युवाओं का दर्द

पिथौरागढ़ सेना भर्ती में युवाओं का हाल-बेहाल

उत्तराखंड।  पिथौरागढ़ में आयोजित सेना की भर्ती में आयी हुई भीड़ को देखकर सभी लोग हैरान हैं, हजारों की संख्या में युवा इस भर्ती में शामिल होने के लिए आए, भीड़ इतनी बेकाबू हो गई कि सरकार ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए उन पर लाठीचार्ज करवाया।

पिथोरागढ़ भर्ती

पिथौरागढ़ सेना भर्ती में सरकारी तंत्र की खामियां छुपाने पर लगी है सरकार।

हाल ए उत्तराखंड… (पिथौरागढ़ सेना भर्ती)

उत्तराखंड में रोजगार के नाम पर पुलिस और आर्मी की भर्ती को ही प्राथमिकता दी जाती थी लेकिन पिछले 8-10 सालों से तो यहां पुलिस की भर्ती नहीं हो पाने तथा पिछले कुछ सालों से अग्निवीर योजना के लागू होने के चलते यहां सही तरीके से आर्मी की भर्ती भी नहीं हो पाई है, जो भर्तियां हो भी रही हैं वो सभी सवालों के घेरे में आ जाती हैं, किसी में पेपर लीक तो किसी में लाठीचार्ज!

पिथौरागढ़ सेना भर्ती के लिए नहीं थे यातायात के इंतजाम

ऐसा लगता है कि पिथौरागढ़ की भर्ती को लेकर उत्तराखंड की धामी सरकार बिल्कुल भी तैयार नहीं थी उन्हें बस केदारनाथ चुनाव की चिंता थी इसीलिए राज्य और केंद्र स्तर के सभी नेताओं की भीड़ उन्होंने केदारनाथ चुनाव को मैनेज करने में लगा दी।भीड़

जितनी बसें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के एक अनपढ नेता के आगमन हेतु भाड़े की भीड़ जुटाने के लिए लगा दी जाती हैं अगर उतनी बसें अगर भर्ती रैलियों के लिए लगा दिए जाते तो युवाओं को भर्ती स्थल तक पहुचने में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता।

चुनाव कराने में व्यस्त हैं हुक्मरान

जितनी तैयारियां एक चुनाव को सफल करने के लिए की जाती हैं अगर उसका 10% भी किसी भर्ती / परीक्षा को सफल बनाने के लिए किया जाता तो शायद युवाओं को यूं भटकना नहीं पड़ता, न पेपर लीक होते और न ही बेरोजगारों की भीड़ देखने को मिलती।

सरकारी तंत्र की खामियों की सजा भी युवाओं को ही मिली

रोजगार की तलाश में उत्तराखंड के दूरदराज से सरकारी खटारा बसों में ठसाठस भरकर युवा अपनी जान जोखिम में डालकर पिथौरागढ़ गए, वहां कडा़के की ठंड में खुले मैदानों में रातभर ठिठुरते रहे, कोई भूखा – प्यासा  कोई कर्ज लेकर इस भर्ती में शामिल होने गया होगा।

सरकारी तंत्र उस भीड़ को नियंत्रित करने में असफल रही तो सरकार ने युवाओं पर लाठियां चलाकर उनके जले पर नमक छिड़कने का काम किया।

रोजगार देने की मंशा नहीं है सरकार की

हमारी सरकारें चाहती ही नहीं हैं कि युवाओं को रोजगार मिले, क्योंकि सरकार में बैठे नेतागण जानते हैं कि अगर युवाओं को रोजगार मिल गया तो उनकी दुकानें बंद हो जाएंगी,  उनके झंडे कौन पकड़ेगा? जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे कौन लगाएगा?

चाटुकारिता के लिए भले ही राष्ट्रीय चैनलों के पत्रकार काफी हों लेकिन झंडा पकड़ने और नारे लगाने के लिए बेरोजगार युवाओं का समूह ही काम आता है।

रोजगार देने में असफल रही सरकारें।

आजादी के बाद से ही सत्ता का सुख ले रहे नेताओं ने कभी भी आम जनता के हितों के बारे में नहीं सोचा, नेता और उनके चमचे पीढ़ी दर पीढ़ी अमीर होते गए लेकिन जनता गरीबी रेखा से नीचे जाती रही, अमीरी और गरीबी के बीच जो बहुत बड़ी खाई आज नजर आ रही है इसके लिए देश की सभी सरकारें जिम्मेदार है।

झूठे वादों से बनती रही सरकारें (पिथौरागढ़ सेना भर्ती)

देश की सरकारें झूठ के दम पर बनती बिगड़ती रही हैं, किसी ने “गरीबी हटाओ” का नारा दिया तो कोई “बहुत हुई महंगाई की मार” बोलकर प्रधानमंत्री बन गया, किसी ने “हर घर रोजगार” के नाम पर गुमराह किया तो किसी ने “2 करोड़ रोजगार हर साल” का पैंतरा अपनाया। असल में न तो गरीबी कम हुई और न ही युवाओं को रोजगार मिल रहे हैं।।( पिथौरागढ़ सेना भर्ती)

 

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error: थोड़ी लिखने की मेहनत भी कर लो, खाली कापी पेस्ट के लेखक बन रहे हो!