क्षयरोग केंद्र (T. B. Hospital) भवाली
एक दौर था जब टीवी(क्षय रोग) एक लाइलाज बिमारी थी, किसी व्यक्ति को टीवी हो जाती थी तो उसका मरना लगभग तय ही मान लिया जाता था। ऐसे दौर में उत्तराखंड के नैनीताल जिले के भवाली में बनाया गया क्षयरोग केंद्र यानी टीबी सेनेटोरियम देश-विदेश के मरीजों के लिए वरदान साबित हुआ। क्योंकि कहा जाता है कि टीबी के इलाज के लिए सबसे जरूरी होती है चीड़-देवदार के पेड़ों से आने वाली ठंडी-ठंडी हव, शुद्ध पानी और पौष्टिक आहार, यहां ये सारी चीजें ईश्वर प्रदत्त थी इसीलिए देश भर के अन्य अस्पतालों के मुकाबले यहां का इलाज कारगर साबित होता था, लेकिन आज यह अस्पताल खुद ही बिमार पड़ा हुआ है।
भवाली में सेनेटोरियम बनने के पीछे की कहानी
कहा जाता है कि रामपुर के नबाब हामिद अली खां की पत्नी को टीबी की बिमारी हो गई थी जिसका इलाज नहीं हो पाने के कारण उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी, नबाब साहब को इस बात से बहुत तकलीफ हुई और जब अंग्रेजों ने उनसे टीबी सेनेटोरियम के लिए जमीन मांगी तो उन्होंने भवाली स्थित अपन 18 हैक्टेयर जमीन अंग्रेजों को दे दी ताकि वो यहां टीबी सेनेटोरियम की स्थापना हो सके और इलाज के आभाव में जैसे उनकी पत्नी की अकाल मृत्यु हुई वैसा किसी और के साथ न हो।
सन 1912 में अंग्रेजों द्वारा भवाली में एक टीबी सेनेटोरियम की स्थापना की गई जहां देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों ने अपना इलाज करवाया और स्वस्थ होकर घर लौटे।
कौन कौन महान हस्तियां पहुची यहां।
वैसे तो यह सेनेटोरियम अंग्रेज़ों ने अपने इलाज के लिए बनवाया था लेकिन यहां देश की महान-महान हस्तियों का भी इलाज हुआ था।
टीबी सेनेटोरियम भवाली में पंडित नेहरू की पत्नी कमला का इलाज हुआ
टीबी सेनेटोरियम भवाली में देश के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू अपनी पत्नी कमला नेहरू का इलाज कराने के लिए लाए और यहीं से उनका इलाज हुआ। बताया जाता है कि वर्ष 1935 में करीब 10 मार्च से 15 मई तक वो यहीं भर्ती रही। (वर्तमान में उनके नाम पर यहां एक महिला वार्ड भी बना है)
उस दौरान पंडित नेहरू नैनी जेल में कैद थे, उन्हें पत्नी की देखरेख के लिए अल्मोड़ा जेल में स्थानान्तरित किया गया। इसी दौरान वे कई बार अपनी पत्नी कमला नेहरू का हाल जानने के लिए भवाली सेनेटोरियम आया करते थे,
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी भी पहुचे थे इलाज कराने
सन 1927 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी जब क्षयरोग (टीबी) से ग्रसित हुए थे तो चिकित्सकों ने उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए पहाड़ी क्षेत्र में प्रवास करने की सलाह दी थी, इसी सिलसिले में वे भवाली सेनेटोरियम आये, लेकिन उस समय यहां टीबी की कोई दवा नहीं होने के कारण वे उपचार के लिए बाहर चले गये।
ये भी पहुचे थे भवाली सेनेटोरियम में इलाज करवाने
और भी अन्य महान हस्तियों ने अपना इलाज यहीं से करवाया था जैसे महान क्रान्तिकारी एवं साहित्यकार यशपाल जी, गायक कुन्दन लाल सहगल जी, उस दौरान खिलाफत आन्दोलन के दिग्गज नेता मोहम्मद अली और शौकत अली, उत्तर-प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सम्पूर्णानन्द जी की धर्मपत्नी समेत हजारों की संख्या में लोगों ने यहां से अपना इलाज करवाया।
भवाली टीबी सेनेटोरियम की वर्तमान स्थिति
आज से लगभग 110 साल पहले बने इस सेनेटोरियम की वर्तमान स्थिति देखकर आप दंग रह जाएंगे, जहाँ उस दौर में 378 बेड की व्यवस्था थी वहां वर्तमान में मात्र 60-70 बेड की ही व्यवस्था है, मशीनरी के आभाव में यह सेनेटोरियम मात्र एक शो-पीस बनकर रह गया है, जर्जर स्थित में यहां के भवन सरकार से मरम्मत की गुहार लगा रहे हैं।
यहां पहुंचने के लिए जो सड़क मार्ग है उसकी स्तिथ इतनी गंभीर है कि मरीज को बिमारी से ज्यादा गाड़ी में लगने वाले झटकों और दुर्घटनाओं का खतरा रहता है।
भाजपा और कांग्रेस की कोरी घोषणाएं
भाजपा और कांग्रेस के नेता यहां आकर कई बार घोषणावीर बन चुके हैं, वो कभी यहां चेस्ट इंस्टीट्यूट बनाने की घोषणा कर जाते हैं तो कभी आयुष ग्राम बनाने का वादा कर जाते हैं, लेकिन यहां का दुर्भाग्य है कि घोषणाएं जमीन पर उतरने का नाम नही लेती हैं, वर्तमान हकीकत तो यही है कि अंग्रेजो ने यह सेनेटोरियम जितना बनाकर दिया था पिछले 70 सालों में हमारी सरकारें उतना भी नहीं संभाल सकी।।
यहां की कुछ जर्जर भवनों में कमला नेहरू और जवाहरलाल नेहरू की यादें संजोकर रखी गई हैं तो कहीं खंडहर बन चुके इमारतों की टूटी हुई दिवारों में अच्छे दिनों के पोस्टर लगे हुए हैं। यहाँ की मशीनें जंग खाकर देश का माहौल देखते हुए भगवा रंग की हो चुकी हैं और कई भवन जर्जर स्थिति में टूटकर भारत माता की जय के नारे लगाते हुए जमींदोज हो रही हैं।
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